बरैला झील- सूखी धरा करें एक ही पुकार, जल बचाओ जीवन बचाओ

बरैला झील


जल संकट के बीच सूर्योदय का मनमोहक दृश्य

सूखी धरा करें एक ही पुकार, जल बचाओ जीवन बचाओ !


हमारे यहाँ तालाबों का लम्बा इतिहास रहा है। यह हमारी सभ्यता का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रही है। पर जैसे-जैसे हम विकास की ओर बढ़ रहे हैं, उसी तरह हम अपनी संस्कृति व सभ्यता को भी भूलते जा रहे हैं।

इसका प्रमाण है बिहार के वैशाली जिले के हजरत जन्दाहा के पूरब में स्थित बरैला झील। स्थानीय लोग इसे गंगा के भाई भी कहते हे।
इसका इतिहास बड़ा गौरवमय रहा है। यह झील करीब 12 हजार एकड़ में फैली है। यह तकरीबन 250 साल पुरानी झील है। यह झील कभी लोगों के लिए जीवनदायी थी। आज यह सूख कर मृतप्राय हो गयी है। इसके सूख जाने से सबसे बड़ी हानि मछुआरों को हुई है। यह तालाब उनके भरण-पोषण का एकमात्र साधन थी। इसके संरक्षण के लिए सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। जब यह झील अस्तित्व में थी, तब यहाँ साइबेरियाई व कई अन्य देशों के 39 प्रजाति के प्रवासी पक्षी आया करते थे। हाल यह है कि अब प्रवासी पक्षियों को देखने को आँखें तरस जाती हैं। बरैला क्षेत्र के ग्रामीण बताते हैं कि यहाँ करीब 500 से अधिक चिकारे व नावें चलती थीं।

यहाँ तमाम छोटे-बड़े नेता आते रहे हैं, पर किसी ने झील के लिए कुछ नहीं किया। यहाँ मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार समेत कई बड़े नेता आ चुके हैं। बिहार सरकार ने इस झील के इकोलाॅजी को देखते हुए "सलीम अली पक्षी अभ्यारण्य" किया। लेकिन मछुआरों ने कोर्ट में केस कर दिया। यह मामला फिलहाल कोर्ट में चल रहा है। यह लगभग 7 करोड़ की प्रस्तावित योजना है।

आज भारत में ऐसे न जाने कितनी झीलें व तालाबें होंगी, जो लुप्त होने के कगार पर है। जलस्रोतों के इस स्थिति का कारण कहीं-न-कहीं मानव ही है। हमने प्रकृति के नियमों तथा व्यवस्था में हस्तक्षेप करना प्रारम्भ करना शुरू कर दिया है। आज हम अपनी इन्हीं भूलों का परिणाम भुगत रहे हैं। जिसे आज हम विकास कहते हैं। वहीं हमारी संस्कृति व सभ्यता के लिए खतरा बनता जा रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका की पाँच बड़ी झीलों से जल परिवहन द्वारा कोयला व लोहा आवश्यक स्थानों पर पहुँचाया जाता है। लेकिन दुख की बात है कि झीलों तथा नदियों में उद्योगों के कचरों को डालने से वे प्रदूषित हो रही हैं। अधिकांश झीलों से पानी का निकास न होने से इनमें प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है।

वैशाली का बरैला झील, दरभंगा जिले का कुशेश्वरस्थान झील समेत जैसी देश की अन्य झीलों व मरती नदियों को उद्धारक का इन्तजार है। बरैला झील को बचाने के लिए संघर्षरत पंकज चौधरी का कहना है कि हम लम्बे समय से बरैला के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन व्यापक समर्थन नहीं मिल रहा है। सरकार ने कई बार आश्वासन दिया, लेकिन जमीन पर काम नहीं हुआ। तभी तो शायद अपनी दशा पर आँसू बहा रही बरैला झील के कण-कण से आवाज आती है,

मेरी हालात पर तरस खाओ और सरकार से जाकर कहो कि मेरी दरकार सुने सरकार....’’

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