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पानापुर सिलौथर

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मेरा गांव पानापुर सिलौथर  :- मेरा गांव बिहार के राजधानी पटना से सटे वैशाली जिला(हाजीपुर) से 30Km पुरब जंदाहा प्रखंड के सैद  मुहम्मद सलाह पंचायत में है। पहले अलुआही पानापुर के नाम से जाना जाता था। गांव के पुरब कालापहाड़ जो डाकघर भी है, पश्चिम में सिलौथर, उत्तर में बाया नदी( रसलपुर पुरुषोत्तम और बेदौलिया),दक्षिण में NH-322 । पुराने समय के लोग कहते हैं कि एक राजा के तीन संतान थे जिनका नाम कला खान, पना खान और सिला खान था। राजा के दूसरे संतान पना खान के नाम पर गांव का नाम पानापुर है। पहले गांव में अलुआ( शकरकंद) का खेती ज्यादा होता था इसलिए पानापुर के साथ अलुआही भी जुड़ा हुआ था। पता नही लोगों ने पानापुर के साथ सिलौथर क्यों जोड़ लिया ? गांव में लगभग 3000 की घनी आबादी हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म के लोग आपसी भाईचारे के साथ रहते हैं गांव का इतिहास गौरवशाली रहा है, गांव के पश्चिम में स्थित योगी बाबा के स्थापना दिवस पर दंगल-कुश्ती और नाटक होता रहा है जो एक गांव की पहचान है। दंगल का आयोजन "पूजा समिति " के द्वारा और नाटक का आयोजन " विजय भारतीय नाट्य कला रंगमंच-पानापुर सिलौथर...

पढ़ने वाला छात्र कहीं भी पढ़ सकता है" तो लगातार बिहार का टॉपर किसी प्राइवेट इंस्टीट्यूट से ही क्यों होता है ?

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लगातार बिहार का टॉपर किसी प्राइवेट इंस्टीट्यूट से ही क्यों होता है ? गोल इंस्टीट्यूट में पढ़ने वाला छात्र NEET परीक्षा में बिहार टॉप किया है बहुत गर्व हो रहा है बिहारियों को...  " अपनी मौत पर भी लोगों को गर्व होने लगा"  बिहार सरकार के किसी भी कॉलेज में पढ़ने वाला छात्र बिहार टॉपर क्यों नहीं ? यह सवाल आपको खुद से और सरकार से पूछना चाहिए। "पढ़ने वाला छात्र कहीं भी पढ़ सकता है" तो लगातार बिहार का टॉपर किसी प्राइवेट इंस्टीट्यूट से ही क्यों होता है ? ( अपवाद को छोड़कर) लगातार मोटे रकम देकर पढ़ने वाले इंस्टिट्यूट से ही बच्चे टॉप करते हैं इससे तो यह स्पष्ट हो गया है कि पढ़ने वाला बच्चा कहीं भी पढ़ सकता है लेकिन टॉप करना मुश्किल है टॉप करने के लिए उसे बिहार के सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ना होगा मोटी रकम देकर GOAL और Akash जैसे इंस्टीट्यूट में ही पढ़ना होगा। सरकार की लगातार शिक्षा विरोधी नीति के कारण आज बिहार के सरकारी कॉलेज और सरकारी स्कूल की स्थिति बद से बदतर बन गया है।  उच्च विद्यालय और + 2 के तो ऐसे हालात बने हुए हैं एक भी बच्चा बिना किसी प्राइवेट से पढ...

बरैला झील- सूखी धरा करें एक ही पुकार, जल बचाओ जीवन बचाओ

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बरैला झील जल संकट के बीच सूर्योदय का मनमोहक दृश्य सूखी धरा करें एक ही पुकार, जल बचाओ जीवन बचाओ ! हमारे यहाँ तालाबों का लम्बा इतिहास रहा है। यह हमारी सभ्यता का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रही है। पर जैसे-जैसे हम विकास की ओर बढ़ रहे हैं, उसी तरह हम अपनी संस्कृति व सभ्यता को भी भूलते जा रहे हैं। इसका प्रमाण है बिहार के वैशाली जिले के हजरत जन्दाहा के पूरब में स्थित बरैला झील। स्थानीय लोग इसे गंगा के भाई भी कहते हे। इसका इतिहास बड़ा गौरवमय रहा है। यह झील करीब 12 हजार एकड़ में फैली है। यह तकरीबन 250 साल पुरानी झील है। यह झील कभी लोगों के लिए जीवनदायी थी। आज यह सूख कर मृतप्राय हो गयी है। इसके सूख जाने से सबसे बड़ी हानि मछुआरों को हुई है। यह तालाब उनके भरण-पोषण का एकमात्र साधन थी। इसके संरक्षण के लिए सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। जब यह झील अस्तित्व में थी, तब यहाँ साइबेरियाई व कई अन्य देशों के 39 प्रजाति के प्रवासी पक्षी आया करते थे। हाल यह है कि अब प्रवासी पक्षियों को देखने को आँखें तरस जाती हैं। बरैला क्षेत्र के ग्रामीण बताते हैं कि यहाँ करीब 500 से अधिक चिकारे व नावें चलती थीं। ...